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 तुझसे ही तो मेरी होली

मन के मौसम कोरे रीते
कितने सावन भादों बीते
चैती-होरी गीत फागुनी
तुम गा दो तो हो ली होली

पीला संदल हुआ है अम्बर
धरती ओढ़े सतरंग चूनर
लाल गुलाबी भोर हुई है
रंग बिखेरे फागुन जी भर
बेरंग मेरा अँगना देहरी
तुम रंग दो तो हो ली होली

चोली लहंगा हुये पुराने
रंगरेजा के लाख बहाने
कहाँ रंगाऊँ चुनर धानी
गाँव हाट में कोई न माने
बँधी- धरी रंगों की पुड़िया
तुम घोलो तो हो ली होली

हवा में उड़ता केसर चंदन
मुखरित है भँवरों का गुंजन
बिछुआ पायल भूले हँसना
भूल गया कंगना भी छनछन
हरी चूड़ियाँ बिंदिया झूमर
तुम ला दो तो हो ली होली

तुम कैसे जोगी बंजारे
गाँव गली ढूँढें हरकारे
न चिट्ठी न पता ठिकाना
खुले रहे नैनों के द्वारे
पंछी भी घर लौट के आएँ
तुम आओ तो हो ली होली

- शशि पाधा
१ मार्च २०२४
   

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