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रंग भरने को आई होली

रंग हीन संवेदनाओं में
रंग भरने को आई होली !

दुबका है एक बच्चा मन में
उसका बचपन खोया रण में
बच्चा देखे दूरबीन से
यौवन बीत रहा बस धन में

रंग-परी सी बनकर उससे
बातें करने आई होली
रंग हीन संवेदनाओं में
रंग भरने को आई होली !

लम्हों की पिचकारी भर भर
सदियाँ सदियाँ वार रही है
अन्तर्मन के हर कोने से
संचित याद बुहार रही है

द्वार तो खोलो परिचय कर लो
दोस्त! मिलन को आई होली
रंग हीन संवेदनाओं में
रंग भरने को आई होली !

- गौतम कुमार सागर
१ मार्च २०२४
   

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