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चलो जी आ गई होली, करूँ जो
काम बाकी है
किसी को दिल का, दिल से भेजना पैग़ाम बाकी है
नशा बाकी, मज़ा बाकी, गुल-ओ-गुलफ़ाम बाकी है
कोई उम्दा ग़ज़ल कहकर लगाना दाम बाकी है
बना डाली जलेबी, दूध की ठंडाई और गुझियाँ
सफ़ाई हो चुकी घर की, बस अब आराम बाकी है
सजा संवरा सा मुखड़ा है निकल जाए न हाथों से
लगाकर रंग गालों पर पिलाना जाम बाकी है
किसी मीठे बहाने से कभी मिल आएँ हम उनसे
भिगोकर इश्क में तन मन बितानी शाम बाकी है
चलो होली के रंग में घोल डाले कुछ शरारत भी
मेरी दीवानगी पर इक अभी इल्ज़ाम बाकी है
कहीं चलती है पिचकारी कहीं कोड़ा कहीं गाली
नज़र से चल रहे हैं तीर, कत्ल-ए-‘आम बाकी है
- विनीता तिवारी
१ मार्च २०२४ |