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 बासंती धूप

खिली नई बासंती धूप
मौसम ने बदला है रूप

जाड़े ने धीरे से बंद किए दरवाज़े
फूलों के नए रंग हर क्यारी में साजे
सबको भाया ये स्वरूप
खिली नई बासंती धूप

मन हुआ तरंगित जब, गूंजा बसंत राग
नव पल्लव, नव सौरभ, बिखरा गंधित पराग
रिक्त हुए अंधियारे कूप
खिली नई बासंती धूप

पंछी चहके चहके, बगिया महके महके
फिर प्रेमी युगलों के, मन हैं बहके बहके
सूरज की किरन है अनूप
खिली नई बासंती धूप

- रेखा राजवंशी
१ मार्च २०२४
   

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