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मन की गुझिया |
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मन की गुझिया बनी नहीं है
जली-भुनी बेरंग पीठी है
सीठी से भी कम सीठी है
गन्ना मिला नहीं चीनी से
पहले जैसी न मीठी है
जोड़-तोड़ में चिटक, रिस रही
भरी कड़ाही छनी नहीं है
केसर-पिस्ता-बादामों में
होड़ भाँग में, पैमानों में
रंग उड़ा, उड़ चढ़ा हुआ है
ऊँची-ऊँची दुकानों में
पिचकारी में बजट भरा अब
रंगों की वह धनी नहीं है
सरसों कहती सेल्फ़ी ले ले
गाय सड़क पर होली खेले
साहब ठंढाई की बोतल
बाँटें द्वार लगाकर मेले
अम्मा करतीं गुझिया-गुझिया
बटुए में एक कनी नहीं है
- जिज्ञासा सिंह
१ मार्च २०२४ |
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