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      होली की त्योहार

मन से मनकी गाँठे खोलो
खोलो अपने मन के द्वार
फागुन के अद्भुत मौसम में
आया होली का त्योहार

पीली सरसों खिली हुईं है
रंग बिरंगे फूल खिले है
अमराई में बौर लगे है
तन्मयता से झूल रहे हैं
चारों ओर उमंगे छाएँ
धरती माँ की यही पुकार

फागुन के रंगों में डूबा
मानव मन सब भूल चले फिर
मानवता की अलख जगी तो
छुआछूत की चूल हिले फिर
नेह ज्योति जल उठे धरा पर
समरसता की बहे बयार

आपस के मतभेद मिटा दो
तब सहिष्णुता तनती जाए
इन रंगीन फिजाओं में फिर
जन तक जन का स्वर पहुँचाए
क्षमाशीलता बढ़े बहुत ही
कठिनाई पर चले प्रहार

- सम्पदा मिश्रा
१ मार्च २०२४
   

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