अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   
 

      
          तिलक की होली

धरती भी अंबर से बोली
हाथ में लेकर चंदन-रोली
आओ संग चलें हमजोली-
खेलें सिर्फ तिलक की होली

नदिया-ताल-तलैया सूखी
प्यासी धरती, जनता भूखी
पानी का संकट गहराता -
तापमान नित चढ़ता जाता
लें संकल्प चलें बन टोली

जलस्तर नित घटता जाए
सागर में जल बढ़ता जाए
हम भी इस पर ध्यान लगाएँ -
अब ना पानी व्यर्थ गँवाए
कैसे भी हम करें ठिठोली

गीले रंग से रंग जाने पर
कितना पानी पड़े बहाना
सोचें लें संकल्प सभी हम-
बूँद-बूँद जल हमें बचाना
सबकी खुशहाली की खातिर
अमिट प्रेम से भर दें झोली

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ मार्च २०२४
   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter