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मैं कुछ नहीं भूली
सब याद है मुझे
हमारे आँगन का ‘नलका’
‘खुरे’ में बैठ
‘मौसी’ का बर्तन माँजना
डिब्बे में राख रख
इक जटा- सी हाथ पकड़।
काले हाथों पर
लकड़ियों के चूल्हे की
सारी कालिख......
याद है मुझे ।
जाने कितने घरों में काम करती थी ‘मौसी’
मेरे मुँह ‘बर्तनोंवाली’ सुन
‘मौसी’ का गुस्सा
गुस्से में बड़- बड़
याद है मुझे।
फिर कभी ‘मौसी’ कहना
नहीं भूले हम।
आज लगता है -
मैंने उसका दिल गल - घिसाया था।
पूस माघ की ठंडी रातें
‘मौसी’ के गले हाथ
सब याद है मुझे।
स्कूल के बाहर
छाबड़ी-सी ले
चूरन बेचता ‘मौसी’ का पति
आधी राह छोड़ चला गया ;
तीन-तीन बेटियों का विवाह
सब याद है मुझे।
मुझे ब्याह की असीस
"जीती रह मेरी बच्ची"
‘मौसी’ का दुपट्टा
हाथ-पोंछते हाथ
सब याद है मुझे।
--कविता वाचक्नवी
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इस सप्ताह
इस माह के कवि में-
अंजुमन में-
गीतों में-
बाल दिवस के अवसर पर
दोहों में-
पिछले
अंकों में
दो दीपावली
विशेषांक
1
नवंबर 2007 के अंक में
मैथिली शरण गुप्त,
डॉ. राम सनेही लाल शर्मा `यायावर',
डॉ. जगदीश व्योम,
पूर्णिमा वर्मन,
महेंद्र भटनागर,
डॉ. मधु संधु,
शोभा महेंद्रू,
राधेश्याम,
सजीवन
मयंक,
वीरेंद्र जैन,
भावना कुंअर,
सरदार कल्याण सिंह,
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे,
असीम नाथ त्रिपाठी
की नई कविताओं के साथ
ज्योति पर्व और
शुभ दीपावली संकलन
9 नवंबर 2007 के अंक में
दीपों के प्रति असीम स्नेह रखने वाली
महादेवी वर्मा
के 20 दीप-गीतों के साथ देश विदेश के अनेक कवि-
हरिहर
झा,
सजीवन मयंक,
गौरव ग्रोवर,
हरि
बिंदल,
देवी नांगरानी,
अरविंद चौहान,
डॉ. सरस्वती माथुर,
राजश्री,
डॉ. आदित्य शुक्ल,
रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु
और
मीनाक्षी धन्वंतरि की
नई दीपावली रचनाएँ
अन्य पुराने अंक |
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