मूक जीवन के अँधेरे में, प्रखर अपलक
जल रहा है यह तुम्हारी आस का दीपक!
ज्योति में जिसके नई ही आज लाली है
स्नेह में डूबी हुई मानों दिवाली है!
दीखता कोमल सुगंधित फूल-सा नव-तन,
चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन!
याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक
यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक!
-महेंद्र भटनागर
1 नवंबर 2007
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