यों तो पर्व अनेक हैं मगर न देखा कोय।
दीवाली के पर्व की जिससे तुलना होय।।
दीवाली पर देखते हो कर हम हैरान।
जैसे सजी दुल्हन हो सजता हिंदोस्तान।।
जा पत्नी के पास तू कर कुछ मीठी बात।
अगर चाँद को देखना दीवाली की रात।।
मैं ही तेरी खुशी हूँ मैं दीवाली ईद।
पैसे दे मिलती नहीं दे कर प्यार ख़रीद।।
बीवी बोली आज है दीवाली कल्यान।
यह साड़ी की माँग है बोल गई मुस्कान।।
दे दीवाली आप को खुशियों के उपहार।
मगर युधिष्ठिर के लिए ये काला त्यौहार।।
दीवाली को हुआ था राम भरत का मेल।
तब से हमें रिझा रहा ये दीपों का खेल।।
गर्मी सर्दी का मिलन मौसम का बदलाव।
दीवाली का आगमन आपस का सद्भाव।।
दीवाली से सीख लो मिल कर रहना यार।
कैसे मिलती खुशी है कैसे बढ़ता प्यार।।
दीवाली पर जलेंगे दीपक लाख हज़ार।
हवा हवन से शुद्व हो, भागें कई बुखार।।
बच्चे खुशी मना रहे दीवाली की रात।
नहीं फुलझड़ी पूछती किसकी क्या औकात।।
ये दीवाली पर्व है ऐसा ही कल्यान।
इससे खुद को जोड़ कर बनते लोग महान।।
ज़्यादा लोग गरीब हैं जीते जी को मार।
वे दीवाली को कहें महँगा है त्यौहार।।
होली दीवाली रहे या हो करवा चौथ।
बिन धन सभी समान हैं अनपढ हाथों पोथ।।
जाते देख बहार को होना मत हैरान।
अब दीवाली आएगी ले खुशियाँ कल्यान।।
खेले माँ के संग हम दीवाली लगी बहार।
पुत्र जलाए दीप फिर अब पोतों की बार।।
दीवाली तो मनेगी मनती है हर बार।
अगर रंगोली सजे न सूने लगते द्वार।।
दीवाली का पर्व है रखना खुले कपाट।
आ कर लौटे लक्ष्मी अगर न देखो बाट।।
छुटे पटाखे रात को किया न हमने कैच।
यों दीवाली मनी थी भारत जीता मैच।।
दूर दीवाली देख ना लेना नैन भिगोय।
जो भी अवसर खुशी दे वही दीवाली होय।।
सरदार कल्यान सिंह
1 नवंबर 2007
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