तुमने दीपावली मनाई है
दीपावली के सुख ख़रीदे हैं
दीपक की ज्योति से
मिष्ठानों से
नए वस्त्र, आभूषण, उपहारों से
ख़रीदे हुए सुख
न फलते हैं
न फूलते हैं।
मैंने दीपावली जी है
हर बार
जब मेरे बच्चे
होस्टल से लौटते हैं।
घर- बाहर
लॉन- दालान
जगमगा उठता है।
बच्चों के कहकहों से
सुर संगीत
हर ओर छा जाता है।
बातचीत से
मिसरी सी
भर आती है मुँह में।
उदासी की सब परतें घोकर
आतिशबाजियों से रोशनी से
चकाचौंध कर देते हैं
बच्चे मेरे मन को।
-डॉ. मधु संधु
1 नवंबर 2007
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