मन के दीये
जलते रहें सब
खुशियाँ लिये।
नेह चिराग
जलाकर रखना
घर-घर में।
मिटा डालेंगी
उजियारे की साँसें
निष्ठुर तम।
तम है हारा
दीये संग लडाई
झूमे उजाला।
जुगनू से हैं
झिलमिलाते दीये
पलों को जिये।
मिटाना होगा
पसरा अँधियारा
आशा दीयों से।
लड़ रहे हैं
उजाला व अँधेरा
जीतेगा कौन?
होती आई है
सच्चाई की ही जीत
बुराई पर।
छिपती फिरे
दीयों की रोशनी से
अमा बेचारी।
दुख हराएँ
ये चांदनी से दीये
सुख फैलाएँ।
-डॉ. भावना कुंअर
1 नवंबर 2007
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