गगन से उतरी परी है रोशनी
आस्था पाकर हरी है रोशनी
रूप जिसका कल्पनाओं से परे
ह्रदय की कादंबरी है रोशनी
खोज पाओ तो स्वयं में खोज लो
प्यार की बारादरी है रोशनी
दीप त्यागी है तपस्वी है
मगर उसकी सहचरी है रोशनी
धरा से आकाश को जो जोड़ती
सात रंगों की ज़री है रोशनी
तम दिशा भ्रम ही सदा देता रहा
रास्तों की फुलझरी है रोशनी
खिड़कियों से मुँह चिढ़ाती है हमें
एक अल्हड़ छोकरी है रोशनी
-सजीवन मयंक
1 नवंबर 2007
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