मतवाली चिड़िया
देखो चिड़िया है मतवाली
रंग-बिरंगे पंखों वाली।
सोने जैसे पंख लगें
काले मोती खूब सजें।
दौड़-दौड़ कर जाती है
दाना चुन-चुन लाती है।
दिन भर करती मेहनत खूब
लगती नहीं है उसको धूप।
सुन्दरता पर ना इतराती
दिन ढलते ही घर को जाती।
चिडिया के बच्चे
चिड़िया के थे बच्चे चार
अच्छा था उनका व्यवहार।
माँ को थे वो नहीं सताते
भूख लगे तो गाना गाते।
मम्मी चिड़िया उड़कर जाती
अच्छा अच्छा दाना लाती।
बच्चे मिल-बाँटकर खाते
इक दूजे से चोंच लड़ाते।
--भावना
कुंअर
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दो वर्षा गीत
(एक)
ढम ढम ढम, ढम ढम ढम, बादल ने फिर ढोल बजाए,
छम छम छम, छम छम छम, बूँदों ने घुंघरू छनकाए,
हिला हिला सर पेड़, पत्तियाँ
देने लगे हैं ताल,
नदियाँ, नाले, कुएँ, सरोवर,
झूम उठे तत्काल।
पीं पीं पीं, पीं पीं पीं,
झींगुर ने बंसी बजाई,
टर टर टर, टर टर टर,
मेढक ने भी तान मिलाई,
थिरक उठे तब पांव मोर के और हुआ यह हाल,
सर पर अपने पांव उठा कर भागा दूर अकाल।
(दो)
बहुत दिनों से नहीं नहाए, धरती, पेड़, बगीचे, फूल,
आँधी ने खेली थी होली और लगाई सबको धूल,
नदियाँ, पोखर, कुआँ, सरोवर सबको बहुत लगी थी प्यास,
टुकुर टुकुर सब देख रहे थे, प्रतिपल एक नज़र आकाश।
बादल ने तब भरी बाल्टी,
सब पर पानी फेंक दिया,
सब ने अपनी प्यास बुझाई
जी भर पानी खूब पिया,
झूम झूम कर मस्ती में फिर पौधे खूब नहाए है,
सारा कलुष मिटा कर अपना फूले नहीं समाए हैं।
- शरद तैलंग |
जग
सुंदर हो जायेगा
गोल गोल सा चिकना चिकना
लगता सबको प्यारा कितना
देखो कितना चालू है
हां-हां हां-हां आलू है
करे मित्रता जो भी हो
चाहे बैंगन - गोभी हो
मटर टमाटर की क्या बात
हर सब्जी में इसका हाथ
नहीं मिली तरकारी आज
चलो चलेगा आलू प्याज
बेसन से जो नाता जोड़े
बने जायकेदार पकौड़े
जब आलू संग मिला पनीर
चमकी सब्जी की तकदीर
हर सब्जी संग करता प्रेम
मिलकर खुश हैं आलू सेम
जैसे आलू सब को भाए
हर सब्जी में घुल मिल जाए
बच्चों तुम भी आदत डालो
हर बच्चे से हाथ मिला लो
सब के संग में करो भलाई
हिन्दू हो या सिख ईसाई
जीवन में भी स्वाद आएगा
ये जग सुन्दर हो जायेगा
--पवन चंदन
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