अनुभूति में ऋचा शर्मा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी
संकलन में-
ज्योतिपर्व–
दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ–
मुझे भी है दिवाली मनानी
हे कमला
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सुन रानी
सुन
सुन रानी सुन
चुप चुप कर रानी
देख सारे सुन रहे हैं
रानी है तू दासी नहीं
तू इतनी तो प्यासी नहीं
स्वामिनी गौरव न भूल
मानिनी एक तुझे ही न चुभा शूल
चुप चुप भी कर रानी
देख सारे सुन रहे हैं
वंश की मर्यादा है होती
सम्मान की पिपासा भी होती
जो दुख सबको लगते हैं
वो दुख कब रानी के होते हैं
क्रंदन करती चीख मचाती
साधारण नारी सी मत बिचर
देख कुछ कर विचार
बिन लाभ, हानि पर ना जा वार
अरी चुप चुप भी कर रानी
देख ना सारे सुन रहे हैं
तू समर्थ है तुझमें है मान
भले न दी गई हो शक्ति तुझको
अनजाने ही पाई गई
अपनी गरिमा का कर विचार
चुभा शूल ले कर क्यों घूमे
दिखलाती जग को अबलापन अपना
निकाल, और उससे उठी जलन से
अपने उपचार का कर ख़याल
रानी है तू दासी नहीं
उठ यही शूल दे उस हृदय में उतार
कि जिसके कारन कष्ट भोगती है आज
रो रो कर दुख अपना कहती
इस छवि से अब तो नारी को उबार
चुप चुप कर रानी
दे दे मुझको इक मौका
कि कह सकूँ उन सबसे
चुप चुप भी करो मूरखों
शायद रानी सुन रही हैं
देखो रानी सुन रही हैं
हे राम रानी सुन रही हैं
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