अनुभूति में ऋचा शर्मा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी
संकलन में-
ज्योतिपर्व–
दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ–
मुझे भी है दिवाली मनानी
हे कमला
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भय
मृत्यु का भय उतना ही
जितना किसी अनजाने का
अनदेखी पीड़ बड़ी लगती
आने वाले किसी भय सी
बीत गयी तो बस इक बात
समय बिताने की खट्टी मीठी गप
स्वाद उसमें उतना ही ज्यादा
जितनी दफा फेंटी जाए
आने से पहले हर पल
बड़ा गंभीर होता है
आ जाने पर दुःसह
पर जब पानी छोड़ हमें
सर से बह जाता है
किस्सा बन जाता है
कहानियाँ अंदाजे बच जाते हैं
ठीक वैसा ही है
यह भय मृत्यु का
क्या पता उस पार क्या है
स्वकृत कर्मों का नरक
अर्जित पुण्यों का स्वर्ग
या चरम सुखद शांति
कि जिस एक की कामना में
मर मर कर प्रतिपल
हम और तुम जीते हैं
या शायद कुछ भी नहीं
के जहाँ किसी का कोई अर्थ नहीं
ऐसे भविष्य की चिन्ता में
क्यों रहें हम तुम बैठे
नाहक क्यों हों भयभीत
वो तो आयेगी
कि जब उसको आना है
ना उससे पहले ना उसके बाद
चिन्ता छोड़ो उठ्ठो
कि जीवन अभी बाकी है
समय नहीं इतना कि
कर सको नष्ट
अनदेखे अनजाने की प्रतीक्षा में
जीवन यों ही पीड़ा सागर है
बन सको बनो संबल
किसी निर्बल का पीड़ित का
समय गर मिले तो कर लेना
भय मृत्यु का
भय पीड़ा का
भय अनजाने का क्योंकि
मृत्यु का भय उतना ही
जितना किसी अनजाने का |