अनुभूति में ऋचा शर्मा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी
संकलन में-
ज्योतिपर्व–
दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ–
मुझे भी है दिवाली मनानी
हे कमला
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मुझे लगता है
मुझे लगता है कि जैसे
मैं हो गया हूँ
सौ साल का एक बुढ्ढ़ा
या कि साठ साल का कबाड़ी
क्यों है ऐसा मैं नहीं जानता
बस इकठ्ठा करता रहता हूँ
अपने हिलते हाथों से
अकारथ ही टटोलता हूँ
कभी किलकता हूँ
ज्यों कोई नन्हा बच्चा
या कि सौ साल का बुढ्ढा
लोहे के इक बड़े कड़ाहे में
यों रेत डालकर, फिरकी देकर
कुछ खुदरा सी चीजों को
धातु के टुकड़ों
शीशे की बोतलों
क्या जाने किन–किन को
घूमता उछलता पाकर
तालियाँ बजाता हूँ
बजाता ही जाता हूँ
बाज वक्त मुझे लगता है
मैं हो गया हूँ
सौ साल का एक बुढ्ढ़ा
या कि साठ साल का कबाड़ी |