अनुभूति में ऋचा शर्मा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी
संकलन में-
ज्योतिपर्व–
दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ–
मुझे भी है दिवाली मनानी
हे कमला
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रोज़ नयी
शुरूआत
रोज़ रोज़ नई बात
हर रोज़ एक नई शुरूआत
फिर भी घूम फिर कर
वहीं लौट आना
छिलके के नीचे छिलके
परतें परत दर परत
पूरा का पूरा उधेड़ जाना
कहीं न पहुँच पाना
क्या यही खोज है
क्या यही है वो खोज
कि जिसके बारे में
इतनी बातें होती हैं
इतने सारे बहस मुबाहिसे
जिसे देखो वही
चाहे सतही तौर पर
या गहरे पानी पैठ कर
यही बस यही करता
कहता चलता चला जा रहा है
फिर क्यों नहीं दे रही
यह निरन्तर खोज
जन्म किसी परिणाम को
या फिर हम सभी
कहीं चूक गए हैं
भटक गए हैं राह से
सुध भूल गई है
वही एक रास्ता
जो था शायद सबसे जरूरी
अब कैसे ढूँढें
क्या है कोई कहीं
जो कर सके मदद हमारी
दिखला सके उस बिन्दु को
कि जहाँ से हमसे डग छूट गई
जो है कोई सामने आए
सहारा दे इस भूली–भाली
सदियों पुरानी खोज को
बचा ले इस समस्त सभ्यता को
जैसे उड़ते जहाज को पक्षी की
फिर फिर जहाज पर
लौट आने की विवशता से
कब तक परतें खुलेंगी
कब तक होती रहेगी
पुनः पुनः शुरूआत
आओ हाथ बढ़ाओ
कि आगे है जाना वहाँ से
करने हैं आविष्कार नए
मिल सके ताकि पथ नया
हो सके उन्नति सभी की
जा सकें सब आगे और आगे
क्योंकि रुकना और
सिर्फ दुहराते जाना
मृत्यु को निमंत्रण देना है
और जीवन का लक्ष्य
मृत्यु कदापि नहीं
आओ मिल कर रचें
नये विश्वास से भरा
नया नित नूतन हो रहा भविष्य
करें अब रोज़ रोज़
एक नई शुरूआत
बिल्कुल नयी शुरूआत |