अनुभूति में ऋचा शर्मा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी
संकलन में-
ज्योतिपर्व–
दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ–
मुझे भी है दिवाली मनानी
हे कमला
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खाली
आँखें
खाली आँखें देखा करती हैं
सपनों के अंकुर कैसे उगते हैं
कैसे उनमें फूल खिले हैं
कैसे उनमें फल लगते हैं
खाली हाथों रोता रहता है
क्यों औरों की मुठ्ठी बँधी है
क्योंकर चाहें बँध पाती हैं
कर ले लाख जतन कितना भी
क्यों उसका आँगन रीता रहता है
खाली मटकी खाली गागर
घर खाली खाली है आगर
सूना आँगन सूना उपवन
ये दर है उजड़ा इक सागर
इसमें फूल न फल लगते हैं
राही आते जाते रहते हैं
क्या उनसे आँगन भरते हैं
आती जाती रवाँ होती दुनिया
सजती सँवरती सिमटती गलियाँ
ना ऐसे बसती हैं
ना उनमें घर बसते हैं
ये तो मौसम के रेले हैं
आते जाते रहते हैं
आते जाते रहते हैं |