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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछुड़े हृदय मिलाऊँगा
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सूनी है माँग निशा की चंदा उगा नहीं
हर द्वार पड़ा खामोश सबेरा रूठ गया
है गगन विकल आ गया सितारों का पतझर
तम ऐसा है कि उजाले का दिल टूट गया
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तुम जाओ घर घर दीपक बनकर मुस्काओ
मैं भाल–भाल पर कुंकुम बन लग जाऊँगा
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछुड़े हृदय मिलाऊँगा
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कर रहा नृत्य विध्वंस सृजन के थके चरण
संस्कृति की इति हो रही क्रुद्ध हैं दुर्वासा
बिक रही द्रौपदी नग्न खड़ी चौराहे पर
पढ रहा किन्तु साहित्य सितारो की भाषा
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तुम गाकर दीपक राग जगा दो मुर्दों को
मैं जीवित को जीने का अर्थ बताऊँगा
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछुड़े हृदय मिलाऊँगा
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इस कदर बढ रही है बेबसी बहारों की
फूलों का मुसकाना तक मना हो गया है
इस तरह हो रही है पशुता की पशु क्रीड़ा
लगता है दुनिया से इंसान खो गया है
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तुम जाओ भटकों को रास्ता बता आओ
मैं इतिहासों को नये सफे दे जाऊँगा
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछुड़े हृदय मिलाऊँगा
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मैं देख रहा नन्दन सी चन्दन बगिया में
रक्त के बीज फिर बोने की तैयारी है
मैं देख रहा परिमल–पराग की छाया में
उडकर आ बैठी फिर कोई चिनगारी है
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पीने को यह सब आग बनो यदि तुम सावन
मैं तलवारों से मेघ–मल्हार गवाऊँगा
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछुड़े हृदय मिलाऊँगा
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— गोपालदास नीरज
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