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अनुभूति में ऋचा शर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अनन्त यात्रा
एक फुसफुसाहट
दीवार और दरवाज़ा
भय
खाली आँखें
मेरे सपने
मुझे लगता है
रोज़ नयी शुरुआत
सुनो पद्मा
स्वर मेरा
सुन रानी सुन
हर बात नयी


संकलन में-
ज्योतिपर्व– दादी माँ का संदेशा
दिये जलाओ– मुझे भी है दिवाली मनानी
           हे कमला

 

मेरे सपने
मेरे सपने कितने अपने
जानूँ मैं ना जानूँ मैं
कुछ पूछ घर का पता मेरे
तो वे आते नहीं
कहते भी वो वही
जिसको माने मन उनका
देश-देश गाँव-गाँव
फिरते रहते यहाँ-वहाँ
क्या जाने किस देश के वासी
कैसे होते वहाँ के मौसम
क्या होती है बरसात कभी
तपती धरती है कभी
क्या जम जाता हिम
उनकी अँगनाई में
और काँप-काँप कर
दाँत बजाकर लगती
उनको भी सर्दी
या भरे रहते कमरे उनके
बड़े बड़े काले मच्छरों से
आधे छत होती बारिश
आधी पर छाता
सीमेंट का बादल
कभी नहीं कुछ भी
बतियाते
फिर भी मुझ को लगते प्यारे
मेरे सपने कितने अपने
जब देखा
बस मेरी बातें
मेरे सुख और मेरे दुःख
रहते सुनते हँसी मेरी
हो जाते एकसार
जब चाहा भला चाहा
जब मिले हो कर अपने मिले
इतने अपने के भूल हुई
क्या देखा मैंने आईना
कहीं खुद ही को
बहलाया तो न मैंने
तभी किसी ने कहा
मैं हूँ यह मैं हूँ
तुम्हारा सपना तुम्हारा अपना
तब सोचा मैंने
अरे यह
मेरा सपना
मेरा सपना कितना अपना
तब बैठा मैं पूछने उससे
करते बरताव कैसा हो
सबके संगी हो यों ही
जैसे मेरे साथ हो
काम सभी के आते हो क्या
जी बहलाते क्या तुम सबका
देते गिरतों को सहारा
बन जाते संबल सबके
सुख में दुःख में
हर ऊँच नीच में
डरा थका कोई जब आता
नाचता नचाता कोई जब आता
मन मग्न लिए जब कहता
कोई मेरी भी सुनो
रुँधा स्वर जब किसी का
माँगते तुमसे अवलम्बन
दे देते हो ना
उसको भी संगी वैसा ही
हाँ है मुझको विश्वास
क्योंकि मुझको पता है
मेरे भोले सपने
ज्यों तुम मेरे
त्यों तुम सबके
क्योंकि तुम हो
मेरे सपने मेरे अपने
मेरे सपने कितने अपने
मेरे सपने कितने अपने

ना जानूँ तुमको
ऐसी तो कोई बात नहीं
जानना किसी को
इतना ही तो न ठहरा
कि जानूँ की
क्या खाते हो
क्या पीते हो
बसेरा कौन गाँव का है
जन कितने तुम्हारे घर में हैं
निभती तो तभी है
जब मन मिलता हो
हाँ मन मेरा और तुम्हारा
मिलता है
सालों का है साथ हमारा
कितने मौसम संग बिताए
गया जहाँ कहीं भी
तुम संग संग आए
कभी न छूटा साथ हमारा
इसलिए
मैं जानता हूँ तुमको
जितना जानूँ मैं खुद को
मेरे सपने मेरे अपने
मेरे सपने कितने अपने
सबके अपने सबके अपने

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