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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

 

ये बादल क्यों रूठे हैं?

व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
आवारा बन घूम रहे हैं, इनके वायदे झूठे हैं।।

हम प्यासे हैं सब प्यासे हैं, धरती माता प्यासी है।
नदियाँ प्यासी, जंगल प्यासे, सबके हृदय उदासी है।।
वर्षा ऋतु अब बीत रही है, ऋतुओं के दिन झूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?

बादल बोला बात झूठ है, मैं न बना आवारा हूँ।
मैं आया था जल बरसाने, पर गैसों का मारा हूँ।।
रोज़ प्रदूषण फैलाने के, करते काम अनूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?

होगा कभी प्रदूषण कम तो, घन भी हँसते आएँगे।
शीतलता वृक्षों की पाकर, घन ही जल बन जाएँगे।।
कोई न होगा पानी प्यासा और तराई पूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?

लगता नहीं प्रदूषण चातक, जग में कम हो पाएगा।
सोच रहे सुख ले लें कुछ दिन, आगे देखा जाएगा।।
वृक्ष काट कर मानव गाड़े, ये अवनति के खूँटे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?

24 अगस्त 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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