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ये बादल क्यों रूठे हैं?
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
आवारा बन घूम रहे हैं, इनके वायदे झूठे हैं।।
हम प्यासे हैं सब प्यासे हैं, धरती माता प्यासी
है।
नदियाँ प्यासी, जंगल प्यासे, सबके हृदय उदासी है।।
वर्षा ऋतु अब बीत रही है, ऋतुओं के दिन झूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
बादल बोला बात झूठ है, मैं न बना आवारा हूँ।
मैं आया था जल बरसाने, पर गैसों का मारा हूँ।।
रोज़ प्रदूषण फैलाने के, करते काम अनूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
होगा कभी प्रदूषण कम तो, घन भी हँसते आएँगे।
शीतलता वृक्षों की पाकर, घन ही जल बन जाएँगे।।
कोई न होगा पानी प्यासा और तराई पूठे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
लगता नहीं प्रदूषण चातक, जग में कम हो पाएगा।
सोच रहे सुख ले लें कुछ दिन, आगे देखा जाएगा।।
वृक्ष काट कर मानव गाड़े, ये अवनति के खूँटे हैं।
व्याकुल होकर चातक पूछे, ये बादल क्यों रूठे हैं?
24 अगस्त 2007
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