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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

  जा रहा था एक दिन
 

जा रहा था एक दिन मैं राह में कुछ सोचता।
माँ भारती के दुश्मनों को मन ही मन में कोसता।।

जीने न देते आदमी को, दुष्ट भी शकून से।
खेलते हैं होलियाँ भी आदमी के खून से।।
कोई फ़रिश्ता भी मिले, मैं जा रहा यह सोचते।

अस्मत लुटेरे, धन लुटेरे, कुछ मिले ऐंठे हुए।
कुछ मुखौटे भी लगा कर भेड़िए बैठे हुए।।
कोई मिले इंसान भी, मैं जा रहा यह खोजता।

दाग वर्दी में लगे हैं, दाग चेहरे पर लगे।
अंगुली उठी है न्याय पर भी दर्द अब किससे कहे?
न्यायी मिले इक हंस जैसा, मैं जा रहा यह सोचते।

9 अक्तूबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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