|
इस देश को उबारें
यह देश है हमारा, इस देश को उबारें।
सिरमौर हो जगत का, इस देश को सँवारें।।
इस देश में भी पनपा, आतंक का ज़हर है।
हर गाँव है सिसकता, हर काँपता शहर है।।
भटके हुए स्वजन को सत्पथ पे ला सुधारें।
यह देश है हमारा, इस देश को उबारें।।
गुरुद्वारे, गिरजा, मस्जिद, हैं शोभते शिवालय।
मज़हब पे लड़ रहे हैं, यह देखता हिमालय।।
जिस दिल में द्वेष पनपा, उसे प्रेम से बुहारें।
खुद लूटते वतन को, इस देश के ही माली।
हमें कर्ज़ में डुबो कर, खुद खा रहे दलाली।।
जिनके लगे मुखौटे, उन्हें ढूँढ़ कर उतारें।
वे सो रहे महल में, फुटपाथ पर ये पाए।
मुश्किल से खाई रोटी, फिर कल की चिंता खाए।।
भूखा न सोये कोई, हर दुख को बिसारें।
24 अगस्त 2007
|