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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

 

इस देश को उबारें

यह देश है हमारा, इस देश को उबारें।
सिरमौर हो जगत का, इस देश को सँवारें।।

इस देश में भी पनपा, आतंक का ज़हर है।
हर गाँव है सिसकता, हर काँपता शहर है।।
भटके हुए स्वजन को सत्पथ पे ला सुधारें।
यह देश है हमारा, इस देश को उबारें।।

गुरुद्वारे, गिरजा, मस्जिद, हैं शोभते शिवालय।
मज़हब पे लड़ रहे हैं, यह देखता हिमालय।।
जिस दिल में द्वेष पनपा, उसे प्रेम से बुहारें।

खुद लूटते वतन को, इस देश के ही माली।
हमें कर्ज़ में डुबो कर, खुद खा रहे दलाली।।
जिनके लगे मुखौटे, उन्हें ढूँढ़ कर उतारें।

वे सो रहे महल में, फुटपाथ पर ये पाए।
मुश्किल से खाई रोटी, फिर कल की चिंता खाए।।
भूखा न सोये कोई, हर दुख को बिसारें।

24 अगस्त 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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