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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

  सूरज

जाने क्यों नित प्रातकाल में,
गहरी निद्रा आती है
सूरज निकला अब तो उठ जा,
मम्मी रोज़ जगाती है

मन में सोचूँ क्यों आ जाते
सूरज हमें जगाने तुम
पूरी नींद न हो पाती,
सोते हो तुम शायद कम

पर सर्दी में सूरज लगते,
हमको खूब सुहाने तुम
छुट्टी के दिन पिकनिक जाते,
मस्ती करते मिलकर हम

एक बात मैं पूछूँ सूरज,
कोहरे से क्यों डरते तुम
वह आता है जिस दिन इससे,
छुपते फिरते हो क्यों तुम

चुपके-चुपके नित छुप जाते,
किसके घर में जाकर तुम
पता बता दो तो आएँगे,
वहीं खेलने मिलकर हम

24 मई 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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