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नारी जागरण गीत
अब जागती है नारी, विश्वास ये दिला दो।
निज शक्ति का जगत को, अहसास तो करा दो।।
घुटती रहेगी कब तक, बनती रहेगी दासी।
क्यों मीन-सी रहेगी, खुद नीर में ही प्यासी।।
सदियों गुलामी वाले, इतिहास को मिटा दो।
निज शक्ति का जगत को, अहसास तो करा दो।।
दिल प्रेम का खज़ाना, है सिंधु जैसी ममता।
अबला नहीं है नारी, फौलाद जैसी क्षमता।।
पा के रहेंगी समता, संत्रास को मिटा दो।
निज शक्ति का जगत को, अहसास तो करा दो।।
हम ही बहारें जग के, खिलते हुए चमन की।
हैं मंद भीनीं खुशबू, बहते हुए पवन की।।
अभिशप्त, त्रस्त जीवन को, वनवास तो दिला दो।
निज शक्ति का जगत को, अहसास तो करा दो।।
9 अक्तूबर 2006
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