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अपना छोटा गाँव रे!
हमको तो प्यारा लगता, अपना छोटा गाँव रे।
चलो-चलो बाग़ों में खाएँ,जी भर के हम आम रे।।
काले भ्रमरों-सी जामुन भी, दीख रहीं डाली-डाली।
लाठी लेकर करता रहता, माली हरदम रखवाली।।
फिर भी बच्चे छुपकर तोड़ें, अमियाँ यहाँ तमाम रे।. . .
हल से जोतें खेतों को फिर, उस पर चले पटेला है।
हमको बिठा पटेला ताऊ, मींड़ा करते ढेला है।।
दादा के संग दाँय चलाएँ, लेते रहें विराम रे।. . .
हरियाली के नीचे सुख से, निर्धनता भी सोई है।
यहाँ प्रदूषण का ख़तरा भी हमको लगे न कोई है।।
बैठ आम के नीचे पढ़ते, आए न छनकर घाम रे।. . .
ठाकुर-बामन, नाई-तेली, हरिजन, जाटव, सक्का भी।
संकट के क्षण हो जाता है सारा गाँव इकठ्ठा भी।।
सभी धर्म मिल कर हैं रहते, झगड़े का क्या काम रे।. . .
24 अगस्त 2007
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