अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

 

जग यूँ दीख रहा

मन की आँखों से
देखा तो जग यूँ दीख रहा

सरेआम कलियों
की इज़्ज़त, भँवरे लूट रहे
अपराधी भेड़िए जेल से, सब ही छूट रहे
कान बन्द कर न्यायी बैठा,
दुःखिया चीख रहा
मन की आँखों से देखा तो
जग यूँ दीख रहा

क्रूर बाज की
कुटिल कामना चिड़िया भाँप रही
दूशासन के हाथ बढ़े हैं लज्जा काँप रही
रूप मुखौटों के अन्दर से,
असली दीख रहा
मन की आँखों से देखा तो
जग यूँ दीख रहा

बहू सुबह से
पति के सम्मुख, चुगली बाँच रही
बेबस माँ कोने में गुमसुम, इज़्ज़त ढाँक रही
मात-पिता से नफ़रत करना
बेटा सीख रहा
मन की आँखों से देखा तो
जग यूँ दीख रहा

महल-गाड़ियाँ
सब आ जायें, अब ये जीत गये
सोच-सोच ये मेहनतकश के जीवन बीत गये
सत्य पकड़ कर सिर बैठा है,
झूठा जीत रहा
मन की आँखों से देखा तो
जग यूँ दीख रहा

खुद ही तन के
वसन खुटी कुछ टाँग रही नारी
फसल फिरौती रँगदारी की, फूल रही भारी
स्वार्थ लबादा ओढ़ घूमते,
कोई न मीत रहा
मन की आँखों से देखा तो
जग यूँ दीख रहा


२१ दिसंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter