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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

 

चलें यहाँ से दूर

ले चल प्रियतम
अब हमको भी, दूर कहीं अति दूर
ये नदिया बन कर आई है,
क्रूर अधिक ही क्रूर

धीरे-धीरे
अँधियारे में, यह घर में घुस आई
डूबे गेहूँ, बर्तन, खटिया, चद्दर, खोर, रजाई
प्राण बचाने कब तक छत पर,
बैठेंगे मजबूर

मील सैकड़ों
दीख रहा है, प्रियतम जल ही जल है
ये तो बाढ़ नहीं लगती है, लगती क्रूर प्रलय है
चुन्नू-मुन्नू बैठे इस छत,
उस छत अल्लानूर

इस घर में
ही मैंने छेड़े, निशदिन हुलस तराने
जीवन भर हमने-तुमने भी, गाए मंगल गाने
प्राण बचें तो लाखों पायें,
भागो अभी हुजूर

बाहर पानी,
भीतर पानी, ऊपर बादल बरसे
भैंस खड़ी पानी में बाहर, चारे को भी तरसे
इस पानी से हार गए हैं,
बड़े-बड़े सब शूर

डूब गई
सब फसल हमारी, अब कैसे उबरेंगे?
जान बचे तो किसी शहर में, मजदूरी कर लेंगे
सुधि लेने सरकार हमारी, पहुँचे
यहाँ ज़रूर


२१ दिसंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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