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ऐसी हवा चले
ऐसी हवा चले नफ़रत के, बादल सब पिघलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।
हृदय-सिंधु की लहर-लहर में, रंग प्यार के दीखें।
हर सुख-दुख में भी इठलाना, हम कलियों से सीखें।।
स्वारथ का जो लेप चढ़ा मन, उसको सब बदलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।
चाहत की रीती गागर भी, सब की भर जाएँ।
कटुता की बूँदें बरसें तो, अमृत बन जाएँ।।
क्रोध-अग्नि हो शांति खुशी में, दृग बूँदें बहलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।
सौरभ से भर जाएँ दिशाएँ, करे किलोलें हास।
बैर उड़े आँधी के संग-संग, इठलाए विश्वास।।
संयम के रथ पर बैठें सब, लालच से सम्हलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।
प्रेम-प्रीति की क्यारी महके, जग के हर कोने में।
बढ़े न कोई हाथ कहीं पर, शूलों को बोने में।।
होवे हृदय उदार हमेशा, हर दु:ख भी सह लें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।
9 अक्तूबर 2006 |