‘सुनामी’ ज्वार
रह गया हूँ
मैं जबरन सेवा-निवृत्त अधिकार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।
अपनों के अपने-अपने परिवार हो गये हैं,
अपनी-अपनी रुचियों के घर-द्वार हो गये हैं,
मैं जन-गण प्रिय रहा, बन्द अखबार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।
चुपके-चुपके मैं सब की आहट ले आता हूँ,
पूरे कवि-मन से सब की खैरियत मनाता हूँ,
मैं रत्नाकर था, सागर की क्षार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।
आज हुआ बदरंग न जाने कल कैसा होगा,
सब काफूर हुआ, जीवन का भोगा-अनभोगा,
मैं कल था लखनऊ, आज हरिद्वार हो गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।
मैं स्वजनों के बीच अपरिचित-सा रह लेता हूँ,
कुशल-क्षेम पूछे कोई बढ़िया कह देता हूँ,
मैं अब अपने लिये सुनामी ज्वार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।
४ फरवरी २०१३