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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

 

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

मैं जबरन सेवा-निवृत्त अधिकार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।

अपनों के अपने-अपने परिवार हो गये हैं,
अपनी-अपनी रुचियों के घर-द्वार हो गये हैं,
मैं जन-गण प्रिय रहा, बन्द अखबार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।

चुपके-चुपके मैं सब की आहट ले आता हूँ,
पूरे कवि-मन से सब की खैरियत मनाता हूँ,
मैं रत्नाकर था, सागर की क्षार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।

आज हुआ बदरंग न जाने कल कैसा होगा,
सब काफूर हुआ, जीवन का भोगा-अनभोगा,
मैं कल था लखनऊ, आज हरिद्वार हो गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।

मैं स्वजनों के बीच अपरिचित-सा रह लेता हूँ,
कुशल-क्षेम पूछे कोई बढ़िया कह देता हूँ,
मैं अब अपने लिये सुनामी ज्वार रह गया हूँ।
केवल एक व्यक्ति-वाला, संसार रह गया हूँ।

४ फरवरी २०१३

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