घर में भी
सम्मान मिला है
मैं प्रसंगवश
कह बैठा हूँ तुम से अपनी रामकहानी!
मेरे मन-भावन
मन्दिर में बैठी हैं खण्डित प्रतिमाएँ,
विधिवत् आराधन जारी है, हँसी उड़ाती दसों दिशाएँ,
मूक वेदना के चरणों में, मुखर वेदना नत-मस्तक है,
जितनी हैं असमर्थ मूर्तियाँ, उतना ही
समर्थ साधक है,
एक ओर जिन्दगी
कामना, एक ओर निष्काम कहानी!
बिखर गयी
जिन्दगी कि जैसे बिखर गयी रत्नों की माला,
कोहनूर कोई ले भागा, तन का उजला मन का काला,
हारा मेरा सत्य, कि जैसे सपना भी न किसी का हारे,
साँसों-वाले तार चढ़ गये, जो
वीणा के तार उतारे,
खास बात ही तो
बन पाती है, दुनिया की आम-कहानी!
एक ज्वार ने
मेरे सागर को शबनम में ढाल दिया है,
कहने को उपकार किया है, करने को अपकार किया है,
प्रखर ज्योति ने आँज दिया है आँखों में भरपूर अँधेरा,
मैं इस तरह हुआ जन-जन का, कोई भी
रह गया न मेरा,
कामयाब है जितनी,
उतनी ही ज्यादा नाकाम कहानी!
निर्वसना प्रेरणा
कुन्तलों बीच छिपाये चन्द्रानन है,
आँसू ही पहचान सकेगा, लहरें गिन पाया सावन है,
मेरा-यह-सौभाग्य,-कि-मुझको
हर अभाव धनवान मिला है,
पीड़ा को बाहर-जैसा ही, घर में भी
सम्मान मिला है,
नाम-कमाने की सीमा
तक, हो बैठी बदनाम कहानी!
४ फरवरी २०१३