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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

घर में भी सम्मान मिला है

मैं प्रसंगवश
कह बैठा हूँ तुम से अपनी रामकहानी!

मेरे मन-भावन
मन्दिर में बैठी हैं खण्डित प्रतिमाएँ,
विधिवत् आराधन जारी है, हँसी उड़ाती दसों दिशाएँ,
मूक वेदना के चरणों में, मुखर वेदना नत-मस्तक है,
जितनी हैं असमर्थ मूर्तियाँ, उतना ही
समर्थ साधक है,
एक ओर जिन्दगी
कामना, एक ओर निष्काम कहानी!

बिखर गयी
जिन्दगी कि जैसे बिखर गयी रत्नों की माला,
कोहनूर कोई ले भागा, तन का उजला मन का काला,
हारा मेरा सत्य, कि जैसे सपना भी न किसी का हारे,
साँसों-वाले तार चढ़ गये, जो
वीणा के तार उतारे,
खास बात ही तो
बन पाती है, दुनिया की आम-कहानी!

एक ज्वार ने
मेरे सागर को शबनम में ढाल दिया है,
कहने को उपकार किया है, करने को अपकार किया है,
प्रखर ज्योति ने आँज दिया है आँखों में भरपूर अँधेरा,
मैं इस तरह हुआ जन-जन का, कोई भी
रह गया न मेरा,
कामयाब है जितनी,
उतनी ही ज्यादा नाकाम कहानी!

निर्वसना प्रेरणा
कुन्तलों बीच छिपाये चन्द्रानन है,
आँसू ही पहचान सकेगा, लहरें गिन पाया सावन है,
मेरा-यह-सौभाग्य,-कि-मुझको हर अभाव धनवान मिला है,
पीड़ा को बाहर-जैसा ही, घर में भी
सम्मान मिला है,
नाम-कमाने की सीमा
तक, हो बैठी बदनाम कहानी!

४ फरवरी २०१३

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