अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

 

 

जन्मान्तर यात्राएँ की हैं

जन्मान्तर यात्राएँ की हैं, मेरे एक प्रसंग ने।
मुझ को, मुझ़-पर छोड़ दिया है
अन्तरंग-बहिरंग ने।

कितने रूप मुखर रहते हैं मेरे रूपाकार में,
मझधारों में बह कर भी, मैं बहता अपनी धार में,
सिन्धु-सिन्धु कर दिया मुझे, मेरी ही
एक तरंग ने।

मैंने तापस-धर्म जिया है, अन्तर्मन के ताप से,
मुझे अवाचित मुक्ति मिल गयी, वरदानों के शाप से,
नाग-पाश से मुझे बचाया, एक
निहंग-विहंग ने।


उच्छ्वासों में परिमत उतरा, नीलोत्पल आकाश से,
अन्तराल का शून्य भर गया, गन्ध-लदे मधुमास से,
मुझे अमृत की सीमा तक, मथ डाला
एक उमंग ने।

मैं अलंघ्य क्षण लाँघ गया हूँ, प्राणान्तक उल्लास में,
कालान्तर इतिहास लिख गया, मन्वन्तर इतिहास में,
मुझे दे दिया रस विदेह का, रस-सम्राट अनंग ने।
मुझ को, मुझ़-पर छोड़ दिया है
अन्तरंग-बहिरंग ने।

४ फरवरी २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter