जन्मान्तर
यात्राएँ की हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं, मेरे एक प्रसंग ने।
मुझ को, मुझ़-पर छोड़ दिया है
अन्तरंग-बहिरंग ने।
कितने रूप मुखर रहते हैं मेरे रूपाकार में,
मझधारों में बह कर भी, मैं बहता अपनी धार में,
सिन्धु-सिन्धु कर दिया मुझे, मेरी ही
एक तरंग ने।
मैंने तापस-धर्म जिया है, अन्तर्मन के ताप से,
मुझे अवाचित मुक्ति मिल गयी, वरदानों के शाप से,
नाग-पाश से मुझे बचाया, एक
निहंग-विहंग ने।
उच्छ्वासों में परिमत उतरा, नीलोत्पल आकाश से,
अन्तराल का शून्य भर गया, गन्ध-लदे मधुमास से,
मुझे अमृत की सीमा तक, मथ डाला
एक उमंग ने।
मैं अलंघ्य क्षण लाँघ गया हूँ, प्राणान्तक उल्लास में,
कालान्तर इतिहास लिख गया, मन्वन्तर इतिहास में,
मुझे दे दिया रस विदेह का, रस-सम्राट अनंग ने।
मुझ को, मुझ़-पर छोड़ दिया है
अन्तरंग-बहिरंग ने।
४ फरवरी २०१३