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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

ऐसे क्षण आये

ऐसे क्षण आये जीवन में
माटी कंचन लगे
नयन रह जायें ठगे-ठगे

तन लहराये अगरु गन्ध-सा
मन लहरे किसलय-सा
हर पल लगे प्रणय की बेला
हर उत्सव परिणय-सा

छाया तक कस लेने-वाला
बन्धन, कंगन लगे
नयन रह जायें ठगे-ठगे

अपनी छाया अंकित कर दूँ
इस देहरी, उस द्वारे
पानी में प्रतिबिम्ब निहारूँ
मन-मोहक पट-धारे

चकाचौंध कर देने वाला
सूरज दर्पन लगे
नयन रह जायें ठगे-ठगे

इधर प्रभंजन उठे, उधर
मैं उपवन-उपवन डोलूँ
फूलों के ऊर्मिल रंगों में
धूमिल पलकें धोलूँ

गगन विचुम्बी वातचक्र नर्तित
नन्दन-वन लगे।
नयन रह जायें ठगे-ठगे

१ फरवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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