खो गयी है सृष्टि
दीप को जल में विसर्जित
कर दिया मैंने
इस अँधेरी रात में, यह
क्या किया मैंने
यों लगे, जैसे नदी में
बह गया हूँ मैं
तीर पर, यह कौन बैठा
रह गया हूँ मैं
एक क्षण, पूरे समर्पण-
का जिया मैंने
मिट गया अन्तर, सुरभियों
और श्वासों में
छोड़ यह तन, छिप गया
सब कुछ कुहासों में
अमृत से बढ़कर, तृषा का
रस पिया मैंने
खो गई है सृष्टि, या फिर
खो गया हूँ मैं
जन्म के पहले प्रहर- सा
हो गया हूँ मैं
काल जैसे कुशल ठग को
ठग लिया मैंने !
१ फरवरी २०१६