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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

 

अकथ्य को कहने का अभ्यास

मैं अकथ्य को
कहने का अभ्यास कर रहा हूँ।
नए कोर्स की कठिन परीक्षा पास कर रहा हूँ।

हूक उठे मन में
तो उस पर काबू पा लेता,
यादें तंग करें तो आँखों को रिसने देता,
लोगों से मिलता हूँ मस्ती की मुद्राओं में
भीतर पूरा कवि हूँ, बाहर
पूरा अभिनेता,
जल में हिम-सा
बहने का अभ्यास कर रहा हूँ।
आँसू पी न सकूँ, निर्जल-उपवास कर रहा हूँ।

निपट अकेले
रोने से जी हल्का होता है,
कोई नहीं पूछने-वाला तू क्यों रोता है,
ये, वे पल हैं, जो नितान्त मेरे-अपने पल हैं
यहाँ मौन ही अब मेरी
कविता का श्रोता है,
घर से बाहर
रहने का अभ्यास कर रहा हूँ।
ऐसा लगता है, जैसे कुछ खास कर रहा हूँ।

दीवारों में
रहता हूँ, घर में वनचारी हूँ,
अब मैं सचमुच ऋषि कहलाने का अधिकारी हूँ,
मेरे सर-पर-का बोझा जो लूट ले गया है
मैं अपने अंतरतम से
उसका आभारी हूँ,
दुख को, सुख से
सहने का अभ्यास कर रहा हूँ।
सागर-डूबी धरती को आकाश कर रहा हूँ।

७ मार्च २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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