देह मुक्ति मिल
गयी मुझे
मैं निर्बन्ध हो गया, पहले ही निर्बन्ध मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही भुजबन्धन में!
अधर-तृप्त अर्पित-अंजलि में स्वत्व सिमट आता है,
शब्द-शब्द में एक अजन्मा गीत, मुझे गाता है,
मैं अरविन्द हो गया, पहले ही अरविन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही परिरम्भन में!
मेघिल गन्ध तरंगित रहती अन्तर की घाटी में,
मृग-शावक सा भरे कुलाचें, कस्तूरी माटी में,
मैं मकरन्द हो गया, पहले ही मकरन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही मधु-मन्थन में!
विसुधि, देवदासी से मीरा-मीरा हो जाती है,
नतिंत-झंकृति आशु-पदों में आत्म निरति गाती है,
मैं रस छन्द हो गया, पहले ही रस-छन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही सम्मोहन में!
श्वास, पवन की शिखर श्रेणियाँ पार किये जाती हैं,
अन्तरिक्ष का ताप, सिन्धु की लहर पिये जाती हैं,
मैं आनन्द हो गया, पहले ही आनन्द-मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही संवेदन में!
४ फरवरी २०१३