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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

 

 

देह मुक्ति मिल गयी मुझे

मैं निर्बन्ध हो गया, पहले ही निर्बन्ध मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही भुजबन्धन में!

अधर-तृप्त अर्पित-अंजलि में स्वत्व सिमट आता है,
शब्द-शब्द में एक अजन्मा गीत, मुझे गाता है,
मैं अरविन्द हो गया, पहले ही अरविन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही परिरम्भन में!

मेघिल गन्ध तरंगित रहती अन्तर की घाटी में,
मृग-शावक सा भरे कुलाचें, कस्तूरी माटी में,
मैं मकरन्द हो गया, पहले ही मकरन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही मधु-मन्थन में!

विसुधि, देवदासी से मीरा-मीरा हो जाती है,
नतिंत-झंकृति आशु-पदों में आत्म निरति गाती है,
मैं रस छन्द हो गया, पहले ही रस-छन्द मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही सम्मोहन में!

श्वास, पवन की शिखर श्रेणियाँ पार किये जाती हैं,
अन्तरिक्ष का ताप, सिन्धु की लहर पिये जाती हैं,
मैं आनन्द हो गया, पहले ही आनन्द-मिलन में!
देह-मुक्ति मिल गयी मुझे, पहले ही संवेदन में!

४ फरवरी २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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