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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

हँसकर और जियो

रो रो मरने से क्या होगा हँसकर और जियो
वृद्ध क्षणों को बाहुपाश में
कसकर और जियो

रक्त दौड़ता अभी रगों में इसे न जमने दो
बाहर जो भी हो पर भीतर लहर न थमने दो
चक्रव्यूह टूचता नहीं तो
धँसकर और जियो

श्वास जहाँ तक बहे उसे बहने का मौका दो
जहाँ डूबने लगे उसे कविता की नौका दो
गुंजन जन्मे संजालों में
फँसकर और जियो

टूटे सपने जीने का अपना सुख होता है
सूरज धुंध धुंध आँखें शबनम में धोता है
ज्वार झेलते अंतरीप में
बसकर और जियो

७ मार्च २०११

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