ज्वार के झूले
पड़े हैं
मैं परिधियों में रहूँ, या तोड़ दूँ सारी-परिधियाँ
यह, कि मेरे सिन्धु-व्यापी प्यास के क्षण तय करेंगे
शीश पर जैसे किसी ने मेघ-मालाएँ कसी हैं
आदिवासी कामनाएँ लोचनों में आ बसी हैं
मैं परिधियों में ढहूँ, या तोड़ दूँ सारी परिधियाँ
यह, कि मेरे ऊर्ध्वगामी ह्रास के क्षण तय करेंगे
आज हम-दोनों प्रभंजन की भुजाओं में जड़े हैं
पारदर्शी सीपियों में ज्वार के झूले पड़े हैं
मैं परिधियों में बहूँ, या तोड़ दूँ सारी परिधियाँ
यह, कि मेरे शेषशायी त्रास के क्षण तय करेंगे
जल-विसर्जित दीप, झिलमिल चन्द्रमा की बाँह में है
चन्दनी दावाग्नि, अक्षय ओस-कण की छाँह में है
मैं परिधियों में सहूँ, या तोड़ दूँ सारी परिधियाँ
यह, कि मेरे शून्यवासी रास के क्षण तय करेंगे
इन्द्रधनुषी शिंजिनी आकर्ण खिंच कर रह गयी है
आत्म-चेतन मूर्छना से, अनकहे कुछ कह गयी है
मैं परिधियों में दहूँ, या तोड़ दूँ सारी परिधियाँ
यह, कि मेरे नटवरी संन्यास के क्षण तय करेंगे
४ फरवरी २०१३