आनन्द-छन्द मेरे
रूप-राग, रति-रंग, मदिर मकरन्द छन्द मेरे
विगत-अनागत सेतुबन्ध, भुजबन्ध छन्द मेरे
मैं संलीन, एक ठहरे अन्तस्-क्षण में
श्वासों में बहती हिमाद्रि ऊर्जा-धारा
जलतरंग-सा प्राण खनकता रहता है
बंजारा तन बजे, कि जैसे इकतारा
सप्त-सिन्धु रस-ज्वार और तटबन्ध छन्द मेरे
विगत-अनागत सेतुबन्ध, भुजबन्ध छन्द मेरे
रत्न-शेष सागर-मन्थन तो व्यर्थ गया
विष-मन्थन से अमृत-तृप्ति पायी मैंने
अन्तरिक्ष का काल-पात्र साक्षी देगा
नीलकण्ठ से निखिल सृष्टि गायी मैंने
ध्वन्यंकित सीमान्त-मुक्त, निर्बन्ध छन्द मेरे
विगत-अनागत सेतुबन्ध, भुजबन्ध छन्द मेरे
मैं सुषुप्ति की घाटी में उतरा स्वर हूँ
मेरा अनुगुंजन, समाधि का गुंजन है
मधु-विस्फोट किया उदयाचल पर मैंने
मैं रवि का दर्पण, रवि मेरा दर्पण है
मैं अनादि, मेरे अनन्त सम्बन्ध छन्द मेरे
विगत-अनागत सेतुबन्ध, भुजबन्ध छन्द मेरे
मैं करुणा का धन, मैं रिक्त नहीं होता
कल्पद्रुम का सहज स्वाभाव जिया मैंने
अर्थान्तर-यात्रा की मेरी कविता ने
गीतों को भाषेतर मर्म दिया मैंने
शब्द-शून्य सम्वाद-सिद्ध, आनन्द छन्द मेरे
विगत-अनागत सेतुबन्ध, भुजबन्ध छन्द मेरे
४ फरवरी २०१३