अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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तेरी तस्वीर
सावन की पहली बूँद से
खुशबू उठी सोंधी–सलोनी
ख़ुश्की उड़ी मेरी पुरातन
नम हो उठा है भीगकर मन।
टप–टप–टिपिर बूँदें गिरी जो
कुछ सुहानी और भी फिर
भुरभुरायी मन की माटी।
बनकर फुहारें मेरे द्वारे
गीत कजरी का जो गाया
बिरवा हृदय का लहलहाया।
ली हैं हिलोरें तनन–तुम–तन
तूलिका का नाच छमछम
और पट पर हुई अंकित
छवि सलोनी स्वप्न–कल्पित।
जानता हूँ इसको मैं प्रिय
तुम्हीं हो ये चित्र ये लय।
गिर रही है धार झम–झम
भादो–घटा घनघोर है अब
आलमे सैलाब का है पर
प्रिय रंग तेरा धुल न पाया
तस्वीर तेरी मिट न पायी।
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