अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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प्रश्न
राम के दंगाईयों
अल्लाह के ज़िहादी,
ईसा के तलबगारों
ऐ नक्सली परिंदों,
आतंक के दरिंदो।
क्या तुमने कभी सोचा
क्यों बुद्ध मुस्कुराते
आतंक की शरण में
क्यों बौद्ध नहीं जाते
क्यों गाँधी ने कभी भी
कोई शस्त्र न उठाया
सर्वशक्तिमान भी पर
था उससे थरथराया।
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