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अनुभूति में विजय ठाकुर की रचनाएँ-

हास्य व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण

छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी


छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास– ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन– आवाहन

  अड़बड़–सड़बड़

हड़बड़–दड़बड़ सोचा मैंने
ताकवि हो इक बड़सर–बड़गड़
ना छंद मंद, चौपाई तिपाई,
करूँ श्लोक की खूब खिंचाई,
मति का भान हो थोड़ा–थोड़ा
यहीं की ईंट, वहीं का रोड़ा
मानदंड हो दंडमान, और
अलंकार हो जाए भगोड़ा
सुना आपने पादकसम्जी?
सोचा मैंने...
अड़बड़–सड़बड़ स्वाद हो ऐसा
जुहू बीच के खोमचे जैसा
हो उपमा चटनी और रसम
हम खाएँ जलेबी के संग–संग
फिर आप कहेंगे कैसे–कैसे
लो, बोलू हूँ मैं–कुछ यों जैसे
लड़की है कितनी नमक़ीन
देखो बज गए पौने तीन
लगता फिर नहीं आवेगा
मनवा फिर चटकावेगा
इंतज़ार में भयी छुहारा
भँवरा आख़िर है बंजारा।   

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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