अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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मवाद
फिर से फूट चला आज एक
बावज़ूद कर्फ़्यू के
फुस्सससस
फूटा भी नहीं बल्कि फोड़ा गया था
कोई अपने घाव तो खोंटता नहीं
उठती है टीस भयंकर
इसलिये
नोच डालो
किसी और का ही
किसी का भी
फिर रात होगी
एक और गोली और फिर
फुस्सससस
अब रात भी क्या
राह चलते
कहीं भी कभी भी
धाँय और फिर
फुस्सससस
किसने फोड़ा फिर से पता नहीं
परंतु फैल गया सर्वत्र लाल लाल
तड़प रहे हैं माटी में लोथड़े माँस के
बह चला है मवाद आतंक का
रोज ही फूटता है
यह फ़ोड़ा नफ़रत का
कहीं भी कभी भी
सूखता हीं नहीं जाने क्यों
जाने कितना मवाद है इसमें
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