अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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कैक्टसों की बदली
प्राणदायी बूँद नन्ही
पड़ी फिर से,
नेपथ्य में तब
चू उठा मन
टप!
वेधकर गहरी वो इतनी
चेतना अवचेतना को,
शुष्क मन को
भिगोकर
छप!
कर गई मरु को हरा फिर
देख कैक्टस
जी उठा है,
सिक्त है
अब!
ठहर वह इसको सहेजे
प्राण में जो
कहीं गहरे पैठ इसके,
गए हैं
बस!
कैक्टसों की यही बदली
बूँद मत कह
जकड़ कर रक्खेंगे इसको,
बँधी मुट्टी गई है
कस!
शायद यह अंतिम मिलन हो
जाने कब फिर हो तरल
उसका हृदय अब
शायद उसका यही हो
सच!
बूँद तो खो जाएगी
उड़ कर हवा में
आद्रता उर में रहेगी
सर्वदा उस बूँद की
पर!
शूल उनके भूलकर तुम
पुष्प उनके देख प्यारे
जी रहे मरु में कभी से
बस एक अदद नमी
पाकर
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