अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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पीछा
एक जोड़ी आँखें
जो पहले कभी
टपक पड़ती थीं
किसी का दर्द छूकर
भीगता था अंतस
एक जोड़े कान
जो पहले कभी
झनझना उठते थे
किसी का आर्त सुनकर
तड़प उठते थे वे तंतु
आज किन्तु
पुतलियाँ हैं फेरतीं
अपनी दिशाएँ
दिख जो जाएँ
दर्द में डूबी सी आहें
सुन सकती कराहें
कर्ण तेरे और मेरे
पर बंधु मेरे
दृष्टि चाहे फेर लें हम
कर्ण भी मूँदें हो चाहे
प्रतिध्वनि फिर भी रहेंगी
दूर तक भागे जो चाहे
दृष्य क्षण का बसा होगा
कहीं भीतर पैठ अपने
करेंगी पीछा सभी का
स्वर्ण-छाया की तरह
चेतना दिल की सभी की
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