अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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रेखा
बिन्दु–बिन्दु बनी रेखा
झुर्रियों में सनी रेखा
माँगती हिसाब सबसे
ज़िंदगी की रूप–रेखा
सघन बन गरीबी–रेखा
अनगिनत को क्यूँ है डसती
शिरो–रेखा, पड़ी–रेखा
सरल–रेखा वक्र–रेखा
अक्षरों में गुंथी रेखा
किस्मतों को रच रहे हैं
क्यूँ न आख़िर है ये मिटती
रेखा–विदों की यह बपौती
कर्क–रेखा, मकर–रेखा
देश औ देशांतरों को
बाँटती कई सीमा–रेखा
इनमें ऐसा क्या रखा है
चलो कुछ रेखा मिटाएँ
बंधनों को हम हटाएँ!
८ अक्तूबर २००२
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