अनुभूति में
विजय ठाकुर की रचनाएँ-
हास्य
व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण
छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी
छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास–
ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन–
आवाहन
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मेघदूत और ईमेल
कम्प्यूटरमय जगत भयो अब
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पाणी ।
सारी धरती कुटुम भयो हैं
इनहिं कृपा से सकल परानी ।।
प्रेमी जन के नाथ तुम्हीं हो
तुम ही सब की पार लगैया ।
दुनिया के सारे प्रेमी की अब
तुम ही हो एकमात्र खेवैया ।।
सजनी दिल्ली सजन शिकागो
इंटरनेट पर रोज मिलत हैं ।
तुमहिं दुआरे भेंट करत हैं
बैचलर सब अब डेट करत हैं ।।
अब जब जब पिय की याद सतावा
पट से दुई ई मेल पठावा ।
पिय की पाती झट चलि आवा
पढ़ि सजनी कों मन हरषावा ।।
अब नहिं तड़पत नैन किसी के
पिय से बिछड़ि विरह कोऊ नारी ।
अबलाएँ सब अब चैट करत हैं
सब महिमा आपहिं की न्यारी ।।
जब से वेब कैम चलि आवा
पल छिन पल छिन दरशन पावा ।
जा बदरा अब काहे सतावा
अब मोर पिय कोऊ दूर न लागा ।।
जब से भई कम्प्यूटर आवा
कालिदास अब तनिक न भावा ।
मेघदूत की बात करत हौ
तनिकौ तुमको लाज न आवा ।।
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