अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजय ठाकुर की रचनाएँ-

हास्य व्यंग्य में—
अड़बड सड़बड़
गुफ्तगू वायरस इश्क से
मेघदूत और ईमेल
स्वर्ग का धरतीकरण

छंदमुक्त में—
अपना कोना
काहे का रोना
कैक्टसों की बदली
तेरी तस्वीर
तीजा पग
दे सको तो
पीछा
प्रश्न
बचपन जिंदा है
मवाद
रेखा
वर्तनी


छोटी कविताओं में-
चकमा
जनता का प्यार
समानता

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास– ग्रीष्म आया
तुम्हें नमन– आवाहन

  बचपन ज़िंदा है

काश कभी ऐसा हो सकता
मैं छोटा बच्चा बन सकता
मेरा बचपन लौट के आता
फिर से मैं कुछ मौज उड़ाता

गर सचमुच ऐसा हो जाए
माँ की गोद में लेट सकूँगा
फिर से नंगा घूम सकूँगा
बाँहों में मैं पापा के तब
फिर से झूले झूल सकूँगा
गर सचमुच ऐसा हो जाए

गर सचमुच ऐसा हो जाए
ढेरों कामिक्स पढ़ सकता हूँ
चट कर सकता हूँ दूध मलाई
टाफी बिस्किट खा सकता हूँ
और बहनों से लड़ सकता हूँ
गर सचमुच ऐसा हो जाए

गर सचमुच ऐसा हो जाए
खेल खिलौने संगी साथी
सब फिर से मिल सकते हैं
पर क्या ऐसा हो सकता है
खोया बचपन मिल सकता है

चाहे बचपन आए न आए
भूल सका ना माँ की लोरी
और दादी की परी कहानी
मुझको ऐसा लगता है
बचपन अब भी ज़िंदा है!
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter