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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ-

नये गीतों में-
क्यों ठग ली धरती
चिंतन मनन
मन आँगन में चंदन सुरभित
शांत एकांत
समझौतों की लिखा-पढ़ी

नए दोहों में-
धूप तिजोरी बंद हुई

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
खिड़की से झाँके

चलूँ अनंत की ओर
दीवानों की बस्ती में
पाती
बस तेरे लिए

मन की बात
मन मेरा आज कबीरा सा

मन रे कोई गीत गा
मैंने भी बनवाया घर
मैली हो गई धूप

मौन का सागर
लौट आया मधुमास

स्वागत ओ ऋतुराज
संधिकाल

दोहों में-
गूँगी मन की पीर

माहिया में-
तेरह माहिये

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

क्यों ठग ली धरती

उमड़े घुमड़े धूम मचा दी
ढोल ढिंढोरा हुई मुनादी

बरसे ना
क्यों ठग ली धरती?

पल छिन बीते रैन बिताई
ताल तलैया करें दुहाई
बाग़-बगीची चरमर देहरी
सीखी कैसी रीत ढिठाई

तरसे ना
क्यों ठग ली धरती?

दादुर टेरे अलख जगाए
थका मयूरा पंख फैलाए
कैसा मन भर मान किया रे
धरे सकोरे भरे भराये

छलके ना
क्यों ठग ली धरती?

बाट जोहते बैठा सावन
पिघला ना पत्थर सा तन –मन
भूल गए क्यों धर्म निभाना
बूँद-बूँद अमृत बरसाना

सरसे ना
क्यों ठग ली धरती?

१५ नवंबर २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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